गजब खलिहर लोग हैं! ढांचे से दिमाग तक गरम – मथुरा में अब जुबानी जंग

Ajay Gupta
Ajay Gupta

उत्तर प्रदेश के मथुरा में चल रहे कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद का नया अध्याय खुला, लेकिन पन्ना थोड़ा फीका निकला। हिंदू पक्ष ने हाई कोर्ट में अर्ज़ी लगाई कि ‘शाही ईदगाह मस्जिद’ को अब ‘विवादित ढांचा’ कहकर पुकारा जाए।

यानी नाम बदलने से काम सुधर जाएगा।

एक तरफ IIT, NEET और UPSC के बच्चे दूसरी तरफ करोड़पति रीलबाज

कोर्ट ने कहा: “इतना भी मत घसीटो…”

इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने याचिका को “इस स्तर पर खारिज” कर दिया।
कोई विस्तृत ऑर्डर नहीं, बस एक मौखिक झटका – “भाई अभी नहीं!”
कोर्ट भी शायद सोच रहा था कि

“नाम बदलने से इतिहास नहीं बदलता, और ना ही हेडलाइन लंबी करनी है!”

नाम में क्या रखा है? लेकिन ट्रेंड में बहुत कुछ रखा है!

मंदिर-मस्जिद से ज्यादा अब मामला “टर्मिनोलॉजी वॉर” बन चुका है।

“बोलो मंदिर वही बनाएंगे – पर अब ढांचे से शुरू करेंगे।”

हिंदू पक्ष का दावा है कि शाही ईदगाह, वही स्थान है जहां भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, और मुगलों ने वहां मस्जिद बना दी।
अब लड़ाई कोर्ट से ज़्यादा शायद वर्ड चॉइस पर है।

ट्विटर/एक्स और इंस्टाग्राम पर अब हर कोई आर्किटेक्ट बन गया है – “Structural Integrity से ज्यादा अब Religious Sensitivity मायने रखती है!”

क्या ये ‘अयोध्या पार्ट 2’ बनने जा रहा है?

राजनीतिक गलियारों में हलचल है –
जहां नेता सोच रहे हैं:

“वोट चाहिए? लो नया धार्मिक मुद्दा!”

और जनता पूछ रही है:

“मूल मुद्दों का क्या हुआ? बिजली-पानी-रोज़गार?”

कौन जीतेगा – नाम, नीयत या नरेटिव?

जब अदालतों में अब ये बहस हो रही हो कि “किसे क्या कहा जाए”, तब समझ जाइए कि मुद्दा अब आस्था से आगे बढ़कर पहचान का हो गया है।

नाम बदलने से न मकान बदलता है, न मकसद। पर राजनीति और पब्लिक की भावनाएं ऐसे ही शब्दों के फेर में बहकती हैं। अब देखना ये है कि अगली सुनवाई में क्या फिर कोई नई याचिका आएगी:

“महोदय, मस्जिद कहने से भावनाएं आहत होती हैं, कृपया ‘डायनामिक डोम’ कहा जाए।”

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